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作词 : Taranjiet Singh Namdhari |
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作曲 : Zubin Balaporia |
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कहाँ जा रहे हो? खुले आसमान की ओर
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तेरे भीगे हुए नैना, कहे अनकही दास्ताँ
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शुकर है तेरा, ऎ मेरे मौला, तेरी ही लिखी है यह दास्ताँ
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कहाँ जा रहे हो? खुले आसमान की ओर
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थमा सा यह समंा
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महकता हुआ यह जहंा
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कहता यह गगन
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अनाेखी यह दास्ताँ
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कहाँ जा रहे हो?
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खुले आसमान की ओर
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खुले आसमान की ओर
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खुले आसमान की ओर
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दबी हुई आहट की करवट को सुन कर,
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बादलाें से िधरी चॉदनी ने पूछा - कहाँ जा रहे हो?
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तो सरहद पार आशीआं ढूँढती आँखों ने कहा,
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बस एक - खुले आसमान की ओर
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खुले आसमान की ओर
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खुले आसमान की ओर
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खुले आसमान की ओर |